4 समीक्षाPlot No 56, 1st Floor, Near Bal Bharti School Sector - 12B, Above SBI, Dwarka, New Delhi, New, Delhi+91 85888 01220www.vidyamandir.comएक संपादन का सुझाव दें विद्यामंदिर क्लासेस कार्यालय
यह लोग चार पांच बच्चे चुन लेते हैं जिन पर फोकस करते हैं अपने इंस्टिट्यूट नाम का नाम चमकाने के लिए. बाकी सैकड़ों बच्चों से इनको कोई मतलब नहीं है उनसे यह मोटी फीस लेकर ऐसे ही छोड़ देते हैं वह जाए भाड़ में इनको कोई मतलब नहीं है कि उनके मां-बाप ने किस किस तरीके से इस लॉकडाउन में फीस भरी है इनके यहां की व्यवस्था का तो क्या कहना इतनी खराब है कि पूछो ही मत. आपसे पीडीसी ले लेंगे लेकिन चेक लगाने से पहले ही बिल्कुल इनफॉर्म नहीं करेंगे ताकि आप मना ना कर दो या यह ना कह दो कि 2 दिन रुक जाओ. बुक्स इन के यहां से कभी भी समय पर नहीं मिलती हैं और कभी भी फोन करके इन्फॉर्म नहीं करते या ग्रुप में मैसेज नहीं डालते कि बुक्स आई हैं या नहीं आई है खुद ही फोन करो मरो भाड़ में जाओ इनके यहां के सिस्टम से मेरा बेटा डिमोटिवेट हो गया है उसका पढ़ाई के प्रति रुचि ही खत्म हो गई है इनकी इंस्टिट्यूट की वजह से. इनके यहां जो फीस इंचार्ज है उनको कोविड के दौरान मैंने बोल दिया कि मेरा चेक 10 दिन के लिए रोक दो तो वह गाली-गलोच पर ही उतर आए।
Good ️? ? जा रहा हूँ, मैं हूँ साल दो हज़ार बीस, क्षमा करना, नफ़रत स्वाभाविक है, छीना जो है बहुत कुछ, बच्चों से पिता को, बहन से भाई को, पत्नी से पति को, ना जाने कितने, रिश्तों से रिश्तों को, कारोबार, ऐशो आराम, सुख चैन, फ़ेहरिस्त लंबी है, द्वेष है, क्रोध है, नाराज़गी है, इच्छा यह सभी की है, कब जाओगे, ️️ कब आएगी चैन की नींद, जा रहा हूँ, मैं हूँ. साल दो हज़ार बीस! ? लौटाया भी है बहुत कुछ मैंने, नदियों को साफ़ पानी, पेड़ों को हरियाली, पहाड़ों को झरने, बेघर पशु-पक्षियों को घर, धड़कनों को सांसें, जीवन को अर्थ, रिश्तों को प्यार, बागों में फूलों की बहार, सर्दी की बर्फ़, गर्मी को ठंडी हवाएं, सूखे को बरसात, ज़िंदगी को मौसमी सौगात, रखना याद, हर हार के बाद है जीत, जा रहा हूँ, मैं हूँ. साल दो हज़ार बीस!
दुखों को नहीं, खुशियों को याद रखना, मिली है जो सीख, उसे संभाल रखना, प्रकृति से, अब और मत खेलना, संसार सब का है, याद रखना, ज़्यादा नहीं, थोड़े की है ज़रूरत, लालच भरी ज़िंदगी की, बदलनी है सूरत, खुशियों से भरा साल दो हज़ार इक्कीस है कल, जा रहा हूँ, मैं हूँ. साल दो हज़ार बीस!